आप सोचेंगे
कवियों पर डेडलाइन का बोझ नहीं
पर उन्हें भी
शुष्क शहर में हुई
एक कमज़ोर, टपकती बारिश को
निचोड़ लेना पड़ता है
अकालग्रस्त आश्वस्त नहीं हो सकता
दोबारा सरकारी हेलिकौप्टर वहीं से गुज़रेगा
वो और कवि
दोनों आश्वस्त नहीं हो सकते
उनके आसमान में फिर बादल मँडराएँगे
और वे उस पक्षाघाती दुख के न होंगे
जिसमें न पकड़ी जाएगी कलम,
न उठा ही सकेंगे
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