Sunday, 5 May 2019

मंच निर्देशन

मैं चाहती हूँ तुम वाक्य की शुरुआत
“सुनो” से करो, जिससे साफ़ हो जाए
ये कहानी मेरे लिए है,
वैसे तो तुम दफ़्तर के जूनियर्स और पार्टियों में
कितना ही ज्ञान बाँच देते हो
उन लोगों से फ़र्क करने के लिए
मुझसे पूछो मेरे काम के बारे में बिना राय दिए,
मेरी मदद माँगो, और अपनी घबराहट का खुलासा करो
लगेगा कुछ बात हुई हमारी,
कि सिर्फ़ बातें बनाकर नहीं चले गए तुम
हमारे मामूली मर जाने के डर से
कितने ही खयाली महल बना डाले हमने
उधर इतने दिनों से टपकता नल
आहत नजरों से मुझे बींधे जा रहा है
आज उसके लिए किसी को बुलाकर ही आते हैं
उसके बाद जाकर कुछ देर पार्क में बैठ जाएँगे
फिर शायद तसल्ली हो
सब कुछ देख ही लिया हमने आख़िर
ज़िंदगी यूँ ही हमारे हाथों से छूटती नहीं जा रही



First published in Jankipul, 12 Mar 2019.




2 comments:

Rashmi Desai said...

This article has truly peaked my interest. I am going to take a note of your site and keep checking for new details about once a week.
Men are getting better!!

ankita said...

Thank you! And interesting blog.

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