Monday, 29 April 2019

चींटियाँ

आंदोलन और नुक्कड़ नाटक के पहले,
पेडीक्योर को मुँह चिढ़ाती दरारों के पहले,
मेरे तलवों के नरम बचपन ने जाना था
एक के बाद एक कदम आगे रखकर
लंबी दूरी तय की जा सकती है।
गर्वीले पाँव, शीतल ज़मीन,
लगा चींटियाँ मेरा रास्ता काट रही हैं।
उन्हें बताना पड़ेगा, सोचा,
व्यवस्था में किसकी जगह कहाँ है।
धरती से मिलकर चलनेवालों को
धराशायी करने मेरे पैर ऊपर से नीचे आए।
एक पल में इतना विस्तार था,
उसमें तरल लोहे की महक
और उसके स्त्रोत बिंदु की टीस
दोनों समा गए।
मानना तो ये चाहूँगी
ज़िंदगी के सबक जल्दी सीख लेती हूँ।
ईमानदारी की बात ये है
मेरे गुरु निपुण थे।
अब कोई जीवन में कुछ
बड़ा करने की सलाह देता है,
तो सोचती हूँ
सटीक होना काफ़ी है।


First published in Jankipul, 12 Mar 2019.




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