Tuesday 30 January 2018

जाड़े का पिटारा

चटाई पे टाँगे पसार धूप खाता गरम गेहूँ
नानी के साथ घिसे काले तिल की खुशबू
संक्रान्ति वाला कोंहड़ा
बोरसी के पास वाला मोढ़ा.
मुँह से निकलने वाला कुहासा
बस थोड़ी देर में रजाई समेटने का झाँसा
शाम का शटर जल्दी गिराने वाली गली
बालू पे भुनतीबबल रैप सी पटपटाती मूँगफली
नहाने के पहले सरसों का तेल,
शरद विशेषांक वाला स्वेटर बेमेल. 



First published in Jankipul18 Feb 2016.




1 comment:

'एकलव्य' said...

शब्द नहीं कैसे व्यक्त करूँ तेरी लिखी बातें ,बस इतना ही बेहतरीन !

Powered By Blogger

FOLLOWERS

ARCHIVE

Blogger last spotted practising feminism, writing, editing, street theatre, aspirational activism.