Thursday, 5 November 2015

अंतर पहचानें

समाज में रहना है तो शादी करनी होगी। 
हाँ, शादी के अन्दर होने वाले बलात्कार, मार-पिटाई, आदि, ज़़ाती मामले हैं। 

बच्चे पैदा नहीं करोगे तो समाज आगे कैसे बढ़ेगा?
बच्चे अगर माँ-बाप को घर से निकालें, ये भले ही उनका निजी मसला है। 

श्राद्ध-कर्म समाज का नियम है। 
उसका खर्च वहन करने के लिए पैसे नहीं? ये तुम्हारी अपनी दिक्कत है। 

इज्ज़त कमानी है तो समाज की समझ में आनेवाली कामयाबी हासिल करनी होगी। 
उससे तुम खुश हो या नहीं, इस माथापच्ची का वक्त समाज के पास नहीं। 
व्यक्तिगत और सामाजिक में फ़र्क है, क्या इतना भी नहीं समझती?


First published in Jankipul, 2 Nov 2015.

































No comments:

Powered By Blogger

FOLLOWERS

Blogger last spotted practising feminism, writing, editing, street theatre, aspirational activism.