जब तुमने हमेशा मुझे टुकड़ों
में ही देखा है,
जब
तुम्हारे लिए मैं कभी संपूर्ण
रही ही नहीं,
तो
ये लो,
संभालो
मेरा ये टुकड़ा,
मेरा
स्तन,
जिसे
मैं हवा में उछाल रही हूँ.
फिर
देखते हैं
अगर
आसमान से गिरती लपटों में
झुलसे तुम्हारे हाथ
कुछ
और टटोलते हुए
वापस
आते हैं.
First published in Jankipul, 2 Nov 2015.
2 comments:
Beautiful poem dear :)
Thanks for always reading :).
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