Wednesday 21 December 2016

एक पत्रकार की मौत

एक पत्रकार की मौत 
तुम्हारे लिए ज़रूरी हो गई 
क्योंकि तुम्हारे हिसाब से 
वो अपने क़द से ऊपर उठने की कोशिश कर रहा था। 

पर अगर वो इतना ही गौण होता 
तो तुम्हें ना दिखता
ना तुम्हारी नज़र में चुभता

और अगर तुम इतने ही ऊँचे होते,
तो उसी की लाश पर अपने डगमगाते  क़दम रख 
तुम्हें उचक कर नज़र में आने की 
मशक़्क़त ना करनी पड़ती। 






First published in Indian Cultural Forum, 9 Dec 2016.



1 comment:

Unknown said...

कहीं से चलता हुआ आज यहाँ आ पहुँचा। नुक़्ता-चीनी के लिए माफ़ी, लेकिन कुछ सलाह है जो ज़ाहिर है बिन-माँगी और ग़ैर-ज़रूरी है लेक़िन फिर भी दिए देते हैं-

1. क़द (नाकि कद)
2. ना तुम्हारी नज़र में चुभता। (phonetically थोड़ा बेहतर मालूम होता है)
3. क़दम (नाकि कदम)
4. मशक़्क़त (नाकि मशक्कत)

ग़ुस्ताख़,
अमित

Powered By Blogger

FOLLOWERS

Blogger last spotted practising feminism, writing, editing, street theatre, aspirational activism.