काश
की बाँटी जा सकती उस प्रसाद
की तरह,
जो
लोग अपने-अपने
भगवान को भेंट करते हैं.
क्योंकि
होती तो है उतनी ही पवित्र
.
. .
हिम्मत.
काश
साँस की तरह हर एक के पास होती
क्योंकि होती
तो है उतनी ही ज़रूरी .
. .
हिम्मत.
पर
न बिकती है,
न
उधार में मिलती है.
पौधे
सी अपने ज़मीर की मिट्टी में
उगानी पड़ती है,
फिर
एक दिन रोशन पेड़ सी लहलहाने
लगती है,
रगों
को पाक़ करती,
झरने
सी चमचमाने लगती है .
. .
हिम्मत.
First published in Yuddhrat Aam Aadmi, 2018.
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