लड़कियाँ
उड़ने के सपने देखती हैं,
भागने
या एम.एम.एस
बनने के नहीं।
तुम्हें
बस इतना कहना है,
"उड़ो,
लड़खड़ाई
तो हम थाम लेंगे।"
या,
कम-से-कम
इतना,
"गिरी
भी तो ज़रूर संभाल सकोगी ख़ुद
को।"
क्या
इतना भी नहीं होता?
तो
इतना तो करो ही:
उन
"बलिदानों"
को
गिनाना छोड़ दो
जिनके
"बदले"
में
तुम्हें उनकी बलि का दान चाहिए।
व्यापार
को रिश्ते का नाम ना देकर,
ख़ुद
को और उनको
इस
रोज़ की पिसाई-धुनाई
से रिहा करो।
First published in Yuddhrat Aam Aadmi, 2018.
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