चढ़ाई आने पर
रिक्शेवाला पेडल मारना छोड़
अपनी सीट से नीचे उतर आता है.
दोनों हाथों से हमारा वज़न खींच
हमें ले जाता है
जहाँ हम पहुँचना चाहते हैं.
रिक्शेवाला पेडल मारना छोड़
अपनी सीट से नीचे उतर आता है.
दोनों हाथों से हमारा वज़न खींच
हमें ले जाता है
जहाँ हम पहुँचना चाहते हैं.
एक दिन
सड़क के उस मोड़ पर
सीट से उतर कर
शायद वो अकेला चलता चले
हमें पीछे छोड़,
सड़क के उस मोड़ पर
सीट से उतर कर
शायद वो अकेला चलता चले
हमें पीछे छोड़,
गुस्से, नफ़रत या प्रतिशोध की भावना से नहीं
पर क्योंकि
उस पल में
हम उसके लिए अदृश्य हो चुके होंगे,
जैसे वो हो गया था
हमारे लिए
सदियों पहले.
पर क्योंकि
उस पल में
हम उसके लिए अदृश्य हो चुके होंगे,
जैसे वो हो गया था
हमारे लिए
सदियों पहले.
उस पल में
उसने फ़ैसला कर लिया होगा
उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता.
उसने फ़ैसला कर लिया होगा
उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता.
First published in Samalochan, 11 Nov 2017.
2 comments:
बहुत ह्रदयस्पर्शी लिखा अपने.
Bahut bahut dhanyawad, Kalaa Shree.
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