क्या ग़ज़ब की बात है
कि जिंदा हूँ।
गाड़ी के नीचे नहीं आई,
दंगों ने खात्मा नहीं किया,
बलात्कार नहीं हुआ,
मामूली चोट-खरोंच, नोच-खसोट ले निकल ली पतली गली से।
अपने-अपने भाग्य की बात है।
जाने बेचारों के कौन से जन्म का पाप था,
जो शिकार हो गए।
मेरे पिछले जन्म के पुण्य ही होंगे
कि शिकारियों की नज़र में नहीं आई,
उनसे नज़र नहीं मिलाई
जाने कौन से जन्म का पाप है
हाय, क्या सज़ा इसी पारी में मिल जाएगी?
First published in Jankipul, 17 April 2014.
3 comments:
इसमें बहुत से दोष हैं। आपकी अनुमति हो तो सुझाव दूँ कि इसे कैसे बेहतर बनाया जाये?
ज़रुर। आभार।
आपका ई मेल पता मिल सकता है? मेरा पता hindiaalochak@gmail.com है। फुर्सत मिलते ही भेजता हूँ। अभी थोड़ी व्यस्तता है। शुभकामनायें!
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