चलती ट्रेन
पायदान पर बर्फ पांव
खिड़की की छड़ों पर सुन्न उंगलियां
छत पर पेचीदे आसनों में उलझे कूल्हे…
पायदान पर बर्फ पांव
खिड़की की छड़ों पर सुन्न उंगलियां
छत पर पेचीदे आसनों में उलझे कूल्हे…
ये सब
आखिर कहीं न कहीं पहुंचने के लिए.
आखिर कहीं न कहीं पहुंचने के लिए.
क्या वाकई
कोई नासमझ मान सकता है
खुद को पहुंचा हुआ–
बगैर सफर किए?
कोई नासमझ मान सकता है
खुद को पहुंचा हुआ–
बगैर सफर किए?
First published in Sadaneera, 21 Apr 2018.
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