चटाई पे टाँगे पसार धूप खाता गरम गेहूँ,
नानी के साथ घिसे काले तिल की खुशबू.
संक्रान्ति वाला कोंहड़ा,
बोरसी के पास वाला मोढ़ा.
मुँह से निकलने वाला कुहासा,
बस थोड़ी देर में रजाई समेटने का झाँसा.
शाम का शटर जल्दी गिराने वाली गली,
बालू पे भुनती, बबल रैप सी पटपटाती मूँगफली.
नहाने के पहले सरसों का तेल,
शरद विशेषांक वाला स्वेटर बेमेल.
1 comment:
शब्द नहीं कैसे व्यक्त करूँ तेरी लिखी बातें ,बस इतना ही बेहतरीन !
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