बहुत
करीब से साफ़ दिखाई नहीं देता,
ये सुनकर कई बार कोशिश की
तुमसे दूर जाने की
,
देर वहाँ साँस रोके बैठी रही,
देर वहाँ साँस रोके बैठी रही,
फिर वापस आ गई।
मैं,
या
कोई और,
किस
तरह
ये
कहने का हक़ रखे
कि तुम्हें चश्मे की ज़रूरत है,
जब
तुमने हमेशा धुँधला ही देखा
है
उसे साफ़ मानते हुए,
कैसे तुम्हारी नज़र को मिलवाया जाए
साफ़ से?
First published in Kathdesh, November 2017.
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