औरतों
को भूख नहीं लगती
कई के फ़ैशन की तो क्या कहने ,
सुबह का चाय-नाश्ता छोड़
सीधे दुपहरी में "ब्रंच" करती हैं।
कई के फ़ैशन की तो क्या कहने ,
सुबह का चाय-नाश्ता छोड़
सीधे दुपहरी में "ब्रंच" करती हैं।
अब
मेरी नानी को ही देख लीजिए।
उस ज़माने में भी अपने फ़िगर की इतनी चिंता थी
कि संयुक्त परिवार के लिए ढ़ेर सारा खाना बनाने के बाद भी
वो और उसकी साथिनें ब्रंच में बस माड़ पीती थीं।
उस ज़माने में भी अपने फ़िगर की इतनी चिंता थी
कि संयुक्त परिवार के लिए ढ़ेर सारा खाना बनाने के बाद भी
वो और उसकी साथिनें ब्रंच में बस माड़ पीती थीं।
कपड़ों
की तरह खाने में भी औरतें कुछ
हट
कर
करना
चाहती
हैं,
बाकी परिवारवालों से कुछ अलग,
उनकी थाली में आढ़ी-बाँकी-जली रोटियाँ, टूटे पुए, मोटे चीलों के अवशेष, आलू-मटर के केवल आलू . . .
सारे स्टाइल देखने को मिलेंगे।
बाकी परिवारवालों से कुछ अलग,
उनकी थाली में आढ़ी-बाँकी-जली रोटियाँ, टूटे पुए, मोटे चीलों के अवशेष, आलू-मटर के केवल आलू . . .
सारे स्टाइल देखने को मिलेंगे।
बेचारे
पतियों को इतना परेशान
करके जो सब्जियाँ मँगवाती
हैं
वो फिर खाती भी नहीं . . . तो क्यों मंगवाया भला?
इन्हें बस चाट-पकौड़ों का शौक है,
गर्भावस्था में मिले अतिरिक्त सरकारी राशन को भी घर के राशन में मिला देती हैं।
वो फिर खाती भी नहीं . . . तो क्यों मंगवाया भला?
इन्हें बस चाट-पकौड़ों का शौक है,
गर्भावस्था में मिले अतिरिक्त सरकारी राशन को भी घर के राशन में मिला देती हैं।
देश-दुनिया
की कोई ख़बर नहीं,
बस रोज़ सोचना और पूछ्ना, "आज खाने में क्या बनाऊँ?"
अरे, अब हर दिन टिंडे खाने पर कोई चुटकुला बना दिया या कभी गुस्से में ज़रा थाली फेंक दी,
तो क्या इसका मतलब कि मर्दों को खाने के अलावा कोई काम नहीं?
बस रोज़ सोचना और पूछ्ना, "आज खाने में क्या बनाऊँ?"
अरे, अब हर दिन टिंडे खाने पर कोई चुटकुला बना दिया या कभी गुस्से में ज़रा थाली फेंक दी,
तो क्या इसका मतलब कि मर्दों को खाने के अलावा कोई काम नहीं?
xxx
वैसे
कुल मिलाकर अच्छा ही है
कि औरतों को भूख नहीं लगती।
क्योंकि जब वे भूखी होती हैं
तो डायन बन जाती हैं।
कि औरतों को भूख नहीं लगती।
क्योंकि जब वे भूखी होती हैं
तो डायन बन जाती हैं।
अलग-अलग
आस्थाओं के अनुसार
नवजात शिशुओं का भक्षण,
जवान जिगरों का सेवन,
या सीधे खून पीने लगती हैं।
नवजात शिशुओं का भक्षण,
जवान जिगरों का सेवन,
या सीधे खून पीने लगती हैं।
खुद
को बुद्धिजीवी समझ धर्म की
आलोचना करनेवाले
नहीं समझते कि धर्म के पीछे भी बहुत बुद्धि लगाई गई है।
औरतों की इस विकराल क्षुधा से बचने के लिए आवश्यक है
कि वे लगातार व्रत करती रहें
नहीं समझते कि धर्म के पीछे भी बहुत बुद्धि लगाई गई है।
औरतों की इस विकराल क्षुधा से बचने के लिए आवश्यक है
कि वे लगातार व्रत करती रहें
जिससे
भोजन के प्रति वे नीरस
और विरक्त हो पाएँ।
जिससे कभी भी पूछ्ने पर उनसे यही जवाब मिले,
"नहीं, मुझे बिल्कुल भूख नहीं।"
और विरक्त हो पाएँ।
जिससे कभी भी पूछ्ने पर उनसे यही जवाब मिले,
"नहीं, मुझे बिल्कुल भूख नहीं।"
First published in Kathadesh, November 2017.
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