'इस
बार संतरे हर जगह महंगे हैं।'
अच्छा, भैया, आप कहते हैं तो मान लेती हूँ।
नहीं, ऐसी निरी नहीं कि शक ना आया हो मन में,
पर ठगे जाने का डर गौण था
विश्वास करने की क्षमता को खो देने के भय के सामने।
First published in Samalochan, 10 July 2014.
अच्छा, भैया, आप कहते हैं तो मान लेती हूँ।
नहीं, ऐसी निरी नहीं कि शक ना आया हो मन में,
पर ठगे जाने का डर गौण था
विश्वास करने की क्षमता को खो देने के भय के सामने।
First published in Samalochan, 10 July 2014.
2 comments:
Viswas karne ki kshamta kuch ine gine logon mein hi rah gayi hai,use banaye rakhne ke liye sabbashi ki hakdar hain aap.
Love. Both the poem and aunty's comment. :)
DSJ
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