Saturday 18 November 2017

जीव शरद: शतम्

सपाट चेहरा लिए बैठी रही वो 
उसकी सहेली बेतहाशा बोलती रही 
उसके टूटे दाँत के बारे में,
जैसे महज़ एक दाँत के खत्म होने से 
रिश्ता भी खत्म हो जाता हो.
हो जाती है कभी दो बातदो लोगों के बीच,
पर आप शादी को खेल नहीं बना देते 
मतभेद होते हैं,
और सुलझ भी जाते हैं.
सहेली दिल की अच्छी सहीपूरी पागल थी,
गुस्सा इतना तेज़कहती जवाब में उसे भी 
पति का दाँत तोड़ डालना चाहिए था. 
ये भी कोई बात हुईउसने सुना नहीं क्या,
आँख के बदले आँख पूरी दुनिया को अंधा बना डालेगी?
अपने पति के साथ वो ऐसा क्यों करना चाहेगी 
अपनी मुश्किलें और क्यों बढ़ाना चाहेगी?
फिर वो कैसे खाया करेगाचबाया करेगा,
खाने में मिली हुई पिसी काँच?

First published in Samalochan, 11 Nov 2017.


No comments:

Powered By Blogger

FOLLOWERS

Blogger last spotted practising feminism, writing, editing, street theatre, aspirational activism.