Tuesday, 21 November 2017

Camouflage

I don't want you to learn too much 
About how you can hurt, how much and where 
So I am going to cry when my lips get burnt 
And complain about why you would give me tea so hot 
When you know I drink it tepid. 


First published in Street Light Press, 20 Nov 2017.




Monday, 20 November 2017

Hunger

So here’s the thing:
Women don't feel hungry.

One hears, in fact,
That among some
The culture of skipping tea and breakfast,
And going straight for brunch,
Is #trending.

Look at my grandmother, for example,
In that day and age too
She must have been so obsessive about her figure that
Despite having cooked pots of food
For a joint family of many,
She and other women of the household
Would only have starch water.

Just as in clothes, in food, as well,
Women want to have something "different",
Something unique,
Compared to what the rest of the family has.

It is not unusual
To find on their plates
These varied styles:
Un-round, burnt rotis
Broken pancakes
Residual potatoes of the potato-pea curry . . .

Why on earth did they then nag their husbands
To bring the veggies
They never planned on having themselves?

Take my word for it,
All that attracts them
Are those advertised
Fingerlickin’ goods on TV.

They even mix with the family’s ration
The extra grain they get from the government
During their pregnancy.

Neither local or international news
Can hold their interest.
The only question they want their men to answer is:
What should I cook today?”

(If men made a joke
On having to eat bhindi every day,
Or got a little pissed
And threw around
A few plates,
Does that mean
They have no concern in the world,
Apart from food?)

xxx

Come to think of it,
It may not be a bad thing,
That women do not feel hungry.

Because when they are hungry,
They become witches.

Depending on their religion,
They start feasting on infants,
Hogging young, juicy hearts,
Or going straight for the kill
And gulping down warm blood.

Those who call themselves intellectuals,
And criticise religion,
Do not comprehend -
Much intelligence has been invested
In religions.

To safeguard people
Against this all-consuming hunger of women,
Religion has made rules
Requiring women to fast regularly.

So that,
Eventually,
They are able to grow indifferent
Towards food,
So that,
In case anyone asks,
They are always able to reply,
No, I am not hungry at all.”


First published in The Daily Geba/Foods Politics and Cultures Project, Nov 2017. 







Sunday, 19 November 2017

अंधकक्ष

डिजिटल दुनिया में सुशोभित हैं अनेकों 
कर्मठ
 समाजसेवीसंवेदनशील कलाकारनिडर लेखकभावुक शिक्षक,
ज्ञान
 से लैसप्रेरणा देतेइंसानियत पर भरोसा कायम रखते,
सब
 एक से एक अनूठे.
फिर इनमें से कुछ पधारते हैं इनबौक्स में,
दिखने
 लगती हैं धीरे-धीरे समानताएँ इनकी 
एक
 बक्स में 
बंद
 एक से चूहे नज़र आते हैं ये,
जिस
 गुल डब्बे में बने छोटे छेदों से 
रोशनी
 पहुँचती है उन तक 
उजागर
 करती है उनकी सोच 
उस
 छेद के माप की.
कुछ अँधेरे कमरे 
नेगेटिव
 को उभार नहीं पाते 
पौज़िटिव
 में,
पर
 दिखला देते हैं 
उनकी
 एक साफ़ झलक.

First published in Samalochan, 11 Nov 2017.



विमार्ग

तुम्हारा नाम दिल में आते ही 
दिल बैठने लग जाता है 
हर एक उस हर्फ के वज़न से 
जो तुम्हें बनाते हैं.
मैं जल्दी से उन्हें उतार नीचे रख देती हूँ,
और तरीके ढूँढ़ती हूँ 
बिना तुमसे नज़रें मिलाए 
तुम्हें पुकारने के,
पन्नोंस्क्रीन और ट्रैफिक के बीच
नाहक कुछ ढूँढ़ते हुए. 
क्योंकि इरादा कर लिया है 
कि तुम मुझे न देख पाओ 
तुम्हें देखने की मशक्कत करते हुए. 
पेचीदा मसला है येतुम्हारा नाम लेना. 
इसमें खतरा हैकहीं पूरी तरह पलट कर 
तुम रूबरू न आ जाओ,
तुम्हें जगह और वक्त न मिल जाए 
मेरी हड़बड़ाई आँखों में देख 
उन सब ख्वाहिशों से वाकिफ होने का 
जिन्हें मैंने आवाज़ दी थी 
जब तुम्हें अपने पास बुलाया था. 

First published in Samalochan, 11 Nov 2017.


Saturday, 18 November 2017

जीव शरद: शतम्

सपाट चेहरा लिए बैठी रही वो 
उसकी सहेली बेतहाशा बोलती रही 
उसके टूटे दाँत के बारे में,
जैसे महज़ एक दाँत के खत्म होने से 
रिश्ता भी खत्म हो जाता हो.
हो जाती है कभी दो बातदो लोगों के बीच,
पर आप शादी को खेल नहीं बना देते 
मतभेद होते हैं,
और सुलझ भी जाते हैं.
सहेली दिल की अच्छी सहीपूरी पागल थी,
गुस्सा इतना तेज़कहती जवाब में उसे भी 
पति का दाँत तोड़ डालना चाहिए था. 
ये भी कोई बात हुईउसने सुना नहीं क्या,
आँख के बदले आँख पूरी दुनिया को अंधा बना डालेगी?
अपने पति के साथ वो ऐसा क्यों करना चाहेगी 
अपनी मुश्किलें और क्यों बढ़ाना चाहेगी?
फिर वो कैसे खाया करेगाचबाया करेगा,
खाने में मिली हुई पिसी काँच?

First published in Samalochan, 11 Nov 2017.


Friday, 17 November 2017

धोखा

शुरूआत से ही . . . आज तक भी 
मैं कृपया पीली लाईन के पीछे और 
लाल रेखा के भीतर रहने वाली रही हूँ. 
ईस्टमैन कलर वाले झिलमिल घेरे मुझे अंदर बुलाएँ 
ऐसी बुरी लड़की नहीं बन सकी. 

पीली लाईन और लाल रेखा के अंदर रहते हुए 
मैं रंगोलियाँ बनाने से मना कर 
कमर पर हाथ डालेपाँव फैलाएठुड्डी निकाले 
खड़ी रहती हूँ
इसलिए अच्छी लड़की नहीं मानी जा सकती. 

आहत आवाज़ों को कई बार मुझे धोखा बुलाते सुना है. 

First published in Samalochan, 11 Nov 2017.


Wednesday, 15 November 2017

नेपथ्य

गाँव में होता है नाटक
फिर चर्चासवाल-जवाब. 

लोग कहते सुनाई देते हैं
"नाटक अच्छा था,
जानकारी भी मिली. 
कोई नाच-गाना भी दिखला दो."

हमारी सकुचाई टोली कहती है,
"वो तो नहीं है हमारे पास."
फिर आवाज़ आती है,
"यहाँ पानी की बहुत दिक्कत है."

वो जानते हैं हम सरकार-संस्था नहीं,
लेकिन जैसे हम जाते हैं गाँव 
ये सोचकर कि शायद वहाँ रह जाए 
हमारी कोई बात,

वो हमें विदा करते हैं 
आशा करते हुए 
कि शायद पहुँच जाए शहर तक 
उनकी कोई बात. 


First published in Samalochan, 11 Nov 2017.






Tuesday, 14 November 2017

दीर्घविराम

राजकुमार थक गया है 
(उसका घोड़ा भी)
एक के बाद एक 
लम्बे सफर पर जा कर,
जिनके खत्म होने तक 
वो राजकुमारियाँ बचा चुकी होती हैं 
अपने-आप को,
जिन्होंने उसे बुलाया भी नहीं था.
एक मौका दो उसे 
खुद को बचाने का,
एक लम्बीगहरीशांत नींद में 
आराम करने दो उसे.
जागने पर शायद कोई राजकुमारी 
उसे प्यार से चूम लेगी,
अगर दोनों को ठीक लगे तो.

First published in Samalochan, 11 Nov 2017.


Sunday, 12 November 2017

आवरण

मैं ठीक नहीं समझती 
तुम्हें ज़्यादा कुछ मालूम पड़े 
इस बारे में कि तुमसे मुझे कहाँकैसे और कितनी 
चोट लग सकती है.  

बस डबडबाई आँखों से तुम्हें देखूँगी 
जब मेरे होठ जल जाएँ,
तुमसे खिन्न सवाल करूँगी,
"क्यों इतना गर्म प्याला मुझे थमा दिया,
जब तुम्हें पता है मैं चाय ठंडी पीती हूँ?"

First published in Samalochan, 11 Nov 2017.



Saturday, 11 November 2017

आगे रास्ता बंद है

चढ़ाई आने पर 
रिक्शेवाला पेडल मारना छोड़ 
अपनी सीट से नीचे उतर आता है. 
दोनों हाथों से हमारा वज़न खींच 
हमें ले जाता है 
जहाँ हम पहुँचना चाहते हैं.
एक दिन 
सड़क के उस मोड़ पर 
सीट से उतर कर 
शायद वो अकेला चलता चले 
हमें पीछे छोड़,
गुस्सेनफ़रत या प्रतिशोध की भावना से नहीं 
पर क्योंकि 
उस पल में 
हम उसके लिए अदृश्य हो चुके होंगे,
जैसे वो हो गया था 
हमारे लिए 
सदियों पहले.
उस पल में 
उसने फ़ैसला कर लिया होगा 
उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता.

First published in Samalochan, 11 Nov 2017.


Monday, 6 November 2017

Market survey

The rich write books
About how they got out of their rags
And that's fair enough.
But is there a market
For other stories of miracle?
Stories by those who have the remains of the day
And yet remain.
Of those who live a little above, below, around the lines of poverty-
Measured and cut out for them by others
At a table with chairs made by, not for, them-
And yet manage to have lives.
Can that blurb produce a wow,
Inspire the reader to pick up the book?
Or do we predict more of a shrug, because the story is ordinary, because "they're used to it"?

First published in Social Justice Poetry, 1 Nov 2017.