मेरे घर की औरतें
हाथों से सांस लेती हैं
हाथों से सांस लेती हैं
उनके दांतों तले आई उनकी जबान
हड़बड़ा कर कदम पीछे हटा लेती है
हड़बड़ा कर कदम पीछे हटा लेती है
पलकें अनकहे शब्दों की गड़गड़ाहट
कस कर भीतर बांध कर रखती हैं
कस कर भीतर बांध कर रखती हैं
कपड़े तह करते,
फर्नीचर की जगह बदलते,
आग से गीली लकड़ी बाहर खींचते,
नारियल तोड़ते…
इन हाथों को प्रशिक्षण दिया गया था
इन पर खुदी लकीरों पर चलने का
फर्नीचर की जगह बदलते,
आग से गीली लकड़ी बाहर खींचते,
नारियल तोड़ते…
इन हाथों को प्रशिक्षण दिया गया था
इन पर खुदी लकीरों पर चलने का
सालों का सीखा वे भूल नहीं सकीं
पर जो कर सकती थीं वह किया
पर जो कर सकती थीं वह किया
लकीरों को खुरदुरा और धुंधला कर दिया
उन रेखाओं से जो उनकी कमाई की थीं
जिनकी अब वे मालिक हैं.
उन रेखाओं से जो उनकी कमाई की थीं
जिनकी अब वे मालिक हैं.
First published in Sadaneera, 21 Apr 2018.
3 comments:
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ३० अप्रैल २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
बहुत-बहुत धन्यवाद।
निमंत्रण
विशेष : 'सोमवार' २१ मई २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला में आपका परिचय आदरणीय गोपेश मोहन जैसवाल जी से करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
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