Sunday, 13 July 2014

आख़िर इन लड़कियों को चाहिए क्या?

यही कि कोई उन्हें ना बताए,
कि उन्हें चाहिए क्या।  


First published in Samalochan, 10 July 2014.




Friday, 4 July 2014

Post-Rain Check

After the rain
you want to go and see
if the dewdrop balanced between the end of the stem and the beginning of the leaf
marked present by the erstwhile clear morning sky
is still there.
You want it to live.


First published in Muse India, Jul-Aug 2014.

कमज़ोर कायदे: औरतों को गैर-बराबर ठहराते कानून

चुनाव के बाद हुई संसद की प्रथम संयुक्त बैठक में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने लोक सभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को उनके नए पद पर बधाई देते हुए कहा, 'एक के बाद एक महिला अध्यक्षों का चयन करके लोक सभा ने इस चिरकालीन धारणा की पुष्टि की है कि महिलायें हमारे समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।' औरतों के लिए संसद और राज्य विधान सभाओं में ३३ प्रतिशत आरक्षण का आश्वासन देते हुए उन्होनें सरकार की ओर से 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' आन्दोलन छेड़ने की बात की। यह भी कहा की महिलाओं पर की गई हिंसा की वारदातों की तरफ़ कोई सहनशीलता नहीं बरती जाएगी। 

हर सरकार मौखिक रूप से महिलाओं की बराबरी, शिक्षा, सुरक्षा, रोज़गार आदि को लेकर ऐसी ही मौखिक प्रतिबद्धता जताती है। पर अगर देश के कानूनों में इस प्रतिबद्धता को ढूंढा जाए तो यह कह पाना कठिन है कि असहनशीलता औरतों के दमन को लेकर है या खुद औरतों की तरफ़। मसलन गोवा के हिन्दुओं के लिए बनाए गए एक कानून के अन्तर्गत अगर महिला २५ साल की उम्र तक माँ नहीं बनती या ३० साल की आयु तक उसे कोई पुत्र नहीं होता, तो उसके पति की दूसरी शादी कानूनी मानी जाएगी। अगर पहली पत्नी की तरफ से अलगाव की पहल की गई और अगर उसका कोई पुत्र नहीं, तो पुरुष के दूसरे विवाह को ही मान्यता दी जाएगी। 

महिला व बाल अधिकारों पर काम करनेवाली अधिवक्ता कीर्ति सिंह द्वारा लिखी गई, अगस्त २०१३ में छपी, संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट ने इस किस्म के दूसरे कानूनों का भी मुआयना किया है जो औरतों के हकों के खिलाफ़ जाते हैं या उनके लिए मुश्किलें खडी कर बेटियों की तुलना में पुत्र चयन को बढावा देते हैं। यहाँ रिपोर्ट में वर्णित ऐसे ही अन्य कानूनी कमियों का सार प्रस्तुत करने की कोशिश की गई है। 
 
दहेज विरोधी कानून 

सन् २०११ के आँकडे बताते हैं कि हर ५ मिनट पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा की गई क्रूरता, प्रति ६१ मिनट दहेज संबन्धी मृत्यु और प्रत्येक ७९ मिनट दहेज निषेध कानून के अन्तर्गत एक मामला दर्ज किया जाता था। 

कानून को कुछ ऐसे परिभाषित किया गया है जिससे लगता है कि लड़केवाले भी उसी तरीके से दहेज देने के लिए मजबूर और प्रताडित किए जा सकते हैं। यह स्थिति की सच्ची तस्वीर बिल्कुल नहीं। इससे दहेज लोभी परिवारों को लड़कीवालों को परेशान करने का एक और मौका मिलता है। 

दहेज को उस धन-सम्पत्ति की तरह देखा गया है जिसे विवाह के सिलसिले में लिया-दिया गया हो। पर शादी के बाद के उन सभी मौकों को नज़रंदाज़ किया गया है जब लड़की के घरवालों से कई तरह की माँगें की जाती हैं। 

शादी पर किए जानेवाले खर्चे पर सरकार की तरफ से कोई सीमा नहीं लगाई गई। तोहफों की सूची बनाने पर भी कोई बाध्यता नहीं। 

यदि दहेज के कारण किसी लड़की की मृत्यु हो जाए, तो भी दोषी को सज़ा नहीं मिलेगी जब तक यह साबित नहीं होता कि प्रताडना मृत्यु के कुछ समय पहले की गई थी। दहेज की वजह से होने वाली मौत की सज़ा हो सकती है सात वर्ष से लेकर उम्रकैद तक। पर इसे हत्या के बराबर नहीं देखा जाता, जिसकी सज़ा आजीवन कारावास होती है। 

रिपोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया है कि दहेज ना तो महिलाओं के उत्तराधिकार हकों की जगह ले सकता है और ना ही ऐसी स्थिति वांछनीय है। दहेज केवल औरतों की आर्थिक और सामाजिक हैसियत को गौण बनाता है। 

उत्तराधिकार संबन्धी कानून 

हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के अन्तर्गत एक पुरुष कि मृत्यु के पश्चात् उसकी सम्पत्ति पर अधिकार बनता है उसकी पत्नी, माँ, बच्चों, या इनकी अनुपस्थिति में इनके प्रतिनिधियों का। जबकि औरतों के लिए यह अलग है। यदि उसे सम्पत्ति माँ या पिता से मिली है, तो उस पर हक बनता है पिता के उत्तराधिकारियों का। पति या ससुर से प्राप्त किए जाने पर पति के वारिस उस सम्पत्ति पर अपना हक समझ सकते हैं। यदि औरत की सम्पत्ति उसकी खुद की बनाई हुई है, तो उसकी मृत्यु के बाद उस पर पहला हक बनता है उसके पति और बच्चों का। इन दोनों के ना होने पर ही सम्पत्ति उसकी माँ या उसके पिता के हिस्से जा सकती है। सन् २००९ के ओमप्रकाश बनाम राधाचरण मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट के सामने एक ऐसा मामला था जिसमें एक महिला सास-ससुर के दुर्व्यवहार और परित्याग के कारण अपने पति की मौत के बाद अपने माता-पिता के साथ रहने लगी थी और खुद काम कर आत्मनिर्भर बन चुकी थी। महिला की मृत्यु के बाद कोर्ट ने कानून को अन्यायपूर्ण घोषित करके भी यही फैसला सुनाया कि मृत महिला की स्वार्जित सम्पत्ति उसके सास-ससुर के पास जाएगी। 

मुस्लिम व्यक्तिगत विधि के हिसाब से औरत को मर्द को मिलनेवाली सम्पत्ति का आधा हिस्सा मिलता है। यानि अगर बेटा और बेटी दोनों मौजूद हैं, तो बेटी को एक और बेटे को सम्पत्ति के दो हिस्से मिलते हैं। 

ईसाई धर्म में जन्मे जो लोग उसके परंपरागत कानूनों के तहत नहीं आते उन पर भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम लागू होता है। कानून के हिसाब से पुरुष की सम्पत्ति का दो-तिहाई हिस्सा उसके वंशजों को मिलता है और एक-तिहाई उसकी पत्नी को। वंशज के अभाव में आधा हिस्सा सम्बंधियों और आधा पत्नी को जाता है। रिश्तेदारों और वंशजों के ना होने पर ही पूरी सम्पत्ति पत्नी को मिल सकती है। 

अगर किसी गैर-पारसी महिला ने किसी पारसी पुरुष से शादी की, तो उस पुरुष की सम्पत्ति पर पत्नी का कोई हक नहीं बनता, जबकि बच्चों को हकदार माना जाता है। पारसी महिला के गैर-पारसी पुरुष से विवाह करने पर बच्चों को पारसी नहीं माना जाता। 

बहुत राज्यों में औरतें सम्पत्ति की हकदार तो बनती हैं लेकिन ज़मीन से जुड़े पुराने कानूनों के कारण वहाँ उनके अधिकारों का हनन होता है। सरकार द्वारा दी जा रही ज़मीन के सन्दर्भ में भी कई राज्यों के कानूनों के अनुसार बेटे को ही ज़मीन मिलने की बात है। 

लिंग जाँच निषेध कानून 

०-६ के आयु वर्ग में भारत में जहाँ १००० लड़कों के मुकाबले सन् २००१ में ९२७ लड़कियाँ हुआ करती थीं, वहीं २०११ की गणना में यह संख्या घट कर ९१९ हो गई। एक सख्त कानून होने के बावजूद अभी इसमें ऐसा कोई विधान नहीं जिससे एक गर्भवती महिला के नियमित परीक्षण के दौरान हो रहे अल्ट्रासाउंड के ज़रिये करवाये जा रहे लिंग जाँच को रोका जा सके। भारतीय दण्ड संहिता में 'गर्भपात' की सज़ा से जुड़ी कुछ धारायें हैं, जैसे यदि कोई महिला 'स्वयं अपने गर्भ समापन के लिए ज़िम्मेदार हो', तो उसे दोषी माना जा सकता है। इन धाराओं को हटाने की ज़रुरत है क्योंकि औषधीय गर्भसमापन कानून के अन्तर्गत उन सभी स्थितियों का ब्योरा दिया जा चुका है जिनमें कानूनी तौर पर गर्भ समापन किया जा सकता है। 

इसके अलावा जनसंख्या नियन्त्रण के तहत केवल दो बच्चे होने पर सरकार ने जो फायदे देने शुरु किए उसका असर भी लड़कियों की भ्रूण हत्या पर पड़ा। दो बच्चे रखने की स्थिति में लोगों ने लड़कियों की जगह लड़कों को और वरीयता देनी शुरु कर दी। 

बाल विवाह प्रतिबंध 

बाल विवाह पर रोक होने के बाद भी कानून ने इसे अवैध्य नहीं ठहराया है। विवाह के लिए लड़की की आयु १८ और लड़के की उम्र २१ रखी गई है। इस अंतर को ना तो कानून में समझाया गया है, और ना ही इस फर्क की ज़रुरत थी। शादी के वक्त लड़की का १८ साल का होना ज़रुरी है। फिर भी कानूनी तौर पर 'शादी' के अन्दर अगर यौनिक संबन्ध बनाए गए हैं और लड़की कम से कम १५ साल की है, तो उसे बलात्कार नहीं माना जाएगा। 

बच्चों के संरक्षण का हक 

संशोधन के बाद हिन्दू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम के अन्तर्गत शादी-शुदा महिलाओं को गोद लेने का बराबर हक है (यह सभी धर्म-समुदाय के लिए नहीं)। पर वे आज भी अपने बच्चों की बराबर संरक्षक नहीं। प्राकृतिक अभिभावक आज भी पिता ही है। 

कार्यस्थल पर यौनिक हिंसा के खिलाफ़ कानून 

कानून के एक हिस्से में 'दुर्भावनापूर्ण उद्देश्य से की गई शिकायत' के लिए महिला को सज़ा का हकदार ठहराने की बात की गई है। यह बाकी पूरे कानून को कमज़ोर बनाता है। इससे महिलाएँ शिकायत करने में और भी असुरक्षित महसूस करती हैं। असंगठित श्रम में जुटी औरतों के लिए भी इसमें कोई प्रावधान नहीं। 

वैवाहिक सम्पत्ति पर अधिकार  

तलाक के बाद महिला का ऐसी सम्पत्ति पर कोई हक नहीं जो उसके विवाहित काल के दौरान पति के नाम पर खरीदी गई हो। अपने पति से निर्वाह के लिए मिलनेवाले जिन पैसों पर उसका हक है उसे हासिल करने के लिए और लम्बे मुकदमों में उलझना पड़ता है, जिनमें आनेवाले खर्चों को वहन करना आसान नहीं। 

वर्ष २०१३ में ही ४०५ महिलाओं पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि विवाह विच्छेद उपरांत ७१.४ महिलाएँ अपने माता-पिता के घर लौट जाती हैं। जो माएँ होती हैं उनमें से ८५.६ प्रतिशत अपने बच्चों को भी पाल रही होती हैं। केवल १८.५ फीसदी औरतें ही खुद तलाक की माँग करती हैं। विलग और तलाकशुदा औरतों के साथ काम करती संस्थाएँ कहती आई हैं कि आर्थिक और सामाजिक असुरक्षा के कारण भारत में बहुत कम ही औरतें तलाक लेने के लिए सामने आती हैं। 

विवाह और यौनिक हिंसा 

बलात्कार संबन्धी कानून में हिंसा की सीमित परिभाषाओं और उसकी दूसरी कमियों को लेकर एक अलग और लम्बी चर्चा की ज़रुरत है। जहाँ तक शादी के अंदर होने वाले बलात्कार का मुद्दा है, तो उसे रोकने के लिए कोई कानून नहीं। वहीं विलग हुई पत्नी का बलात्कार करने पर केवल २-७ साल तक की ही सज़ा हो सकती है, जो कि बलात्कार के अधिकतम दण्ड से बहुत कम है। 

 . . . 

इन कानूनों पर चर्चा के अलावा रिपोर्ट ने कानूनों के सकारात्मक पक्षों की ओर ध्यान दिलाते हुए सरकारी व गैर-सरकारी संस्थानों द्वारा कार्यान्वयन संबन्धी सुझाव दिए हैं और 'औनर किलिंग' जैसे तेज़ी से बढ़ते अपराधों को रोकने हेतु खास कानून बनाने की बात की है।  

    
    For Morcha, July 2014. 

Mine

You will know the rocks that hold the stones but will dare not venture into them.
Not knowing what fear is, you'll pretend to know all about it by avoiding the mud, the pits, the jagged ends of things.

But I have known.

I have known how gratefully they come to me for sanctuary.
They are mine because I made them.
I birthed them when I cleaned them of the mud, the pits, the jagged ends.
Till I had met them they were not.
And because I birthed them, made them.
I cried for joy and kissed them.
Because of the mud, the pits and the jagged ends.

I dealt with the awkwardness of embracing a thing so small, tried many angles, and did my best to hug them.

And you who do not know, do not know a thing about a thing,
Carry them about on your limp wrists,
Ears that years ago mixed up listening-hearing,
Your bony ashen fingers,
And your cold hearts.

You make me yawn.

You think you own them,
But they'll never belong to you.
You give what you know to be a triumphant smile, the only kind you know,
(But it's so sad, oh, so sad)
And you say it doesn't matter, that you don't care.

But if only you knew.
If only you knew
What it is
To matter to, to be cared for by
The thing that you own.
What it is
For it to belong to you.
What it is
To trade the dead weight of a bird around your neck
For a mere feather
That bounces off and floats around you
But never strays afar
Of its own will
And comes to rest in the crook of your neck.


First published in Muse India, Jul-Aug 2014.




Thursday, 3 July 2014

Red Velvet

My first view of the red velvet gilt-edged diary
Was of its opening page, of a declaration in my newly-wed aunt’s hand
On my uncle’s behalf
Saying he will never hit her again
Signed by my uncle, with love.

In the bottommost shelf of her almirah
I saw the book again today
When her teenaged daughter was rummaging for a favourite top.

Skipping several blank pages after the first one
I saw my aunt’s grocery lists
And miniscule digits secured in ovals
That showed how much she had managed to save.


First published in Muse India, Jul-Aug 2014. Subsequently published in Califragile, 23 Jan 2018.



Split-Vision

To watch the act you go together
But what you see 
You see alone.


First published in Muse India, Jul-Aug 2014.


Wednesday, 2 July 2014

I Can Explain This

Maybe you think I didn’t look at your roses
(Yes, yes, I know they were only twenty a bunch)
Because glass-caged, glassy-eyed, voices do not reach me
Or that
Conditioned-hair, conditioned-air, the thoughts in my head are frozen
 
But my eyes didn’t go to meet yours
Only for the fear of what they might find there
And because I couldn’t have explained all this then
In the flicker of a red light.


First published in Muse India, Jul-Aug 2014.


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