Monday 2 November 2015

अब मेरी बारी

जब तुमने हमेशा मुझे टुकड़ों में ही देखा है,
जब तुम्हारे लिए मैं कभी संपूर्ण रही ही नहीं,

तो ये लो,
संभालो मेरा ये टुकड़ा,
मेरा स्तन
जिसे मैं हवा में उछाल रही हूँ.

फिर देखते हैं 
अगर आसमान से गिरती लपटों में झुलसे तुम्हारे हाथ 
कुछ और टटोलते हुए 
वापस आते हैं.


First published in Jankipul, 2 Nov 2015.












2 comments:

Anjali Sengar said...

Beautiful poem dear :)

ankita said...

Thanks for always reading :).

Powered By Blogger

FOLLOWERS

Blogger last spotted practising feminism, writing, editing, street theatre, aspirational activism.