एकलव्य ने चरणों में रखा अंगूठा काट,
तब पर भी नहीं हुई क्षुधा समाप्त।
सदियों तक निरंतर होते रहे आघात,
कभी अंगूठा रहित, कभी बनाया अंगूठा छाप।
तब पर भी नहीं हुई क्षुधा समाप्त।
सदियों तक निरंतर होते रहे आघात,
कभी अंगूठा रहित, कभी बनाया अंगूठा छाप।
द्रोण, यूँ कब तक माँग-माँग कर छोटे होते रहोगे,
अबकी एकलव्य ने अंगूठा दिखा दिया, तो कहाँ मुँह छिपाते फिरोगे?
अबकी एकलव्य ने अंगूठा दिखा दिया, तो कहाँ मुँह छिपाते फिरोगे?
First published in Indian Cultural Forum, 9 Dec 2016.
BAHUT KHUB LIKHA HAI APP NE...
ReplyDeleteThanks for sharing with us...
ReplyDeletehttps://touristshubb.com/top-10-forts-in-maharashtra/